जेट एयरवेज़: 'दिवालिया कंपनी' ने कैसे की फिर उड़ान भरने की तैयारी



एक समय भारत की बेहद चर्चित एयरलाइंस रही जेट एयरवेज़ एक बार फिर उड़ान भरने की तैयारी में है.

 मंगलवार को राष्ट्रीय कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) ने जेट एयरवेज़ को दोबारा शुरू करने के लिए कालरॉक-जालान कंसोर्टियम की योजना को मंज़ूरी दे दी.

कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि NCLT की मुंबई बेंच ने नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) और नागरिक उड्डयन मंत्रालय को 22 जून से 90 दिनों के लिए जेट एयरवेज़ को टाइम स्लॉट देने के लिए कहा है

अब टाइम स्लॉट देने पर नागरिक उड्डयन नियामक अंतिम निर्णय लेंगे. हालाँकि, ऐसा माना जा रहा है कि इसमें थोड़ा समय भी लग सकता है.

जेट एयरवेज़ की यात्रा

एनआरआई बिज़नेसमैन नरेश गोयल ने 1992 में जेट एयरवेज़ की स्थापना की थी और 1995 से इसने अपनी उड़ानें शुरू की थीं. 2004 में जेट एयरवेज़ ने अपनी अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी शुरू कीं. 

कंपनी ने काफ़ी तरक्की की और एक समय एयर इंडिया के अलावा केवल जेट एयरवेज़ ही भारतीय एयरलाइंस कंपनी थी, जो विदेशों से भी उड़ान भर रही थी.

आँकड़ों के मुताबिक़, फ़रवरी 2016 में जेट एयरवेज़ का भारत के 21.2% पैसेंजर मार्केट शेयर पर क़ब्ज़ा था और एक दिन में दुनिया की 55 से अधिक जगहों से उसकी तक़रीबन 300 उड़ानें थीं.

जेट एयरवेज़ के अच्छे दिन काफ़ी दिन तक नहीं बने रहे और एयरलाइंस सेक्टर की ख़राब होती हालत और बैंक के क़र्ज़ के कारण कंपनी दिवालिया होने की कगार पर पहुँच गई.

मार्च 2019 में नरेश गोयल और उनकी पत्नी अनीता गोयल ने बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स पद से इस्तीफ़ा दे दिया. 

जेट एयरवेज़ एयरलाइंस की उड़ानें अप्रैल 2019 में बंद हो गईं और क़र्ज़दारों के समूह ने जून 2019 में इसके दिवालिएपन की प्रकिया शुरू कर दी. 

लेकिन एक साल बाद अक्तूबर 2020 में जेट एयरवेज़ के वित्तीय क़र्ज़दारों की नीलामी के दौरान कालरॉक कैपिटल अलायंस और मुरारी लाल जालान ने जेट एयरवेज़ को ख़रीद लिया. 

कालरॉक-जालान कंसोर्टियम क्या है

कालरॉक कैपिटल लंदन स्थित एक वैश्विक वित्तीय सलाहकार फ़र्म है, जो लगभग 20 सालों से रियल एस्टेट के अलावा अलग-अलग कंपनियों में प्रमुख निवेशक के साथ-साथ सह-निवेशक रही है. 

वहीं, कंसोर्टियम के दूसरे साझेदार दुबई स्थित बिज़नेसमैन मुरारी लाल जालान हैं. 

रियल एस्टेट डिवेलपर जालान के यूएई, रूस, उज़्बेकिस्तान और भारत में व्यवसाय हैं. जालान जेट एयरवेज़ के बोर्ड में किस पद पर रहेंगे यह अभी तक स्पष्ट नहीं है. 

कालरॉक के बोर्ड सदस्य मनोज नरेंद्र मदनानी के हवाले से ब्लूमबर्ग क्विंट वेबसाइट लिखती है कि कालरॉक का मक़सद जेट एयरवेज़ के बहाने भारत के विमानन बाज़ार में घुसने का है.

वो कहते हैं, "हम समझते हैं कि भारत दुनिया में घरेलू विमानन का तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार है. साथ ही वैश्विक सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक्स के मामले में जेट एयरवेज़ के पास बहुत अच्छा इन्फ़्रास्ट्रक्चर है."

मदनानी कहते हैं कि कालरॉक जेट एयरवेज़ को बजट एयरलाइन बनाने की जगह फ़ुल सर्विस एयरलाइन बनाने पर ध्यान केंद्रित करेगी, क्योंकि इस समय भारत में केवल एयर इंडिया ही ऐसी सर्विस देने वाली एयरलाइन है.

नाम न सार्वजनिक करने की शर्त पर एक विमानन विशेषज्ञ बीबीसी हिंदी से कहते हैं कि कालरॉक-जालान कंसोर्टियम ने NCLT में जो प्लान पेश किए हैं वो काफ़ी अच्छे हैं और इससे जेट एयरवेज़ के पुनर्जीवित होने की बहुत संभावनाएँ हैं.

वो NCLT के फ़ैसले को एक नज़ीर बताते हुए कहते हैं कि दिवालिएपन के नए क़ानून के कारण जेट एयरवेज़ को राहत मिली है. उनका कहना है कि अगर कंपनी बंद हो जाती तो कई रोज़गारों की संभावनाएं समाप्त हो जातीं, लेकिन अब नए रोज़गार की संभावनाएँ बनेंगी. 

अप्रैल 2019 में जब जेट एयरवेज़ ने अपनी उड़ान बंद की, तब उसके पास 12 विमान और 8,500 से अधिक कर्मचारी थे लेकिन अभी उसके पास कितने विमान और कितने कर्मचारी हैं इसकी सही-सही जानकारी कहीं मौजूद नहीं है.

कंपनी के नए प्रमोटर 'जेट एयरवेज़' के ब्रैंड को वैसे ही इस्तेमाल करना चाहते हैं और वहीं उनकी योजना साल के अंत तक 25 विमान के साथ दोबारा अंतरराष्ट्रीय उड़ान शुरू करने की है. 

जेट एयरवेज़ क़र्ज़ से कैसे निकलेगी बाहर

साल 2019 में जब कंपनी ने अपना संचालन बंद किया, तब उस पर देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया समेत कई सरकारी कंपनियों का तक़रीबन 8,000 करोड़ रुपए बक़ाया था.

कंपनी के मालिक अब बदल गए हैं लेकिन कंपनी अभी भी क़र्ज़ में है. 

लाइव मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, "कंपनी को क़र्ज़ से बाहर निकालने के लिए कालरॉक-जालान कंसोर्टियम ने अक्तूबर 2020 में जो योजना पेश की थी. उसके तहत उसने कहा था कि वो पहले दो साल में क़र्ज़दाताओं को 600 करोड़ रुपए देगी और कंपनी की तक़रीबन 89% हिस्सेदारी ले लेगी."

इसके अलावा पहले साल में अचल संपत्ति और लग्ज़री कारों को भी बेचने की योजना है. इसके बाद नए प्रमोटर्स की योजना तीसरे साल में 131 करोड़, चौथे साल में 193 करोड़ और पाँचवें साल में 259 करोड़ रुपये क़र्ज़दाताओं को देने की है.

इसके साथ ही एयरलाइंस से हो रही कमाई भी इसमें जोड़ी जाएगी. एक प्रकार से पूरे पाँच सालों में क़र्ज़दाताओं को 1,183 करोड़ रुपए लौटाने की योजना है. 

कालरॉक कैपिटल दोबारा एयरलाइंस को संचालन में लाने के लिए 900-1000 करोड़ रुपए भी देगी. वहीं, वित्तीय क़र्ज़दाता जेट एयरवेज़ में 10% इक्विटी भी पाएँगे. 

जेट एयरवेज़ के आगे चुनौतियाँ

NCLT में मामले की सुनवाई के दौरान जेट एयरवेज़ ने अपनी उड़ानों के पुराने टाइम स्लॉट को ही देने के लिए कहा है, जिसका DGCA और नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने विरोध किया है. 

DGCA और मंत्रालय ने कहा है कि विमानन कंपनी उन टाइम स्लॉट पर दावा नहीं ठोक सकती है, जो दिवालिएपन के मामले की सुनवाई से पहले उसके पास थे.

जेट एयरवेज़ ऐसी प्रमुख एयरलाइन कंपनी थी, जिसके पास विमान उड़ानों के महत्वपूर्ण टाइम स्लॉट हुआ करते थे लेकिन उसकी उड़ानें बंद होने के बाद इसे दूसरी कंपनियों को दे दिए गए. जेट एयरवेज़ अब वापस वही टाइम स्लॉट भी चाहती है. 

एयरलाइंस को दोबारा शुरू करने की प्रक्रिया को देखने के लिए ग्रांट थॉर्नटन एडवाइज़री कंपनी को ज़िम्मा सौंपा गया है. 

इस कंपनी के रिस्ट्रक्चरिंग सर्विसेज़ के प्रमुख आशीष छोछरिया ने विभिन्न मीडिया समूहों से बातचीत में कहा है कि वो पहले के टाइम स्लॉट न मिल पाने से बहुत हताश हैं, यह वो स्लॉट नहीं हैं, जो पहले इस्तेमाल किए जा रहे थे अगर यह उसके क़रीब भी होते तो उससे भी काम चलाया जा सकता था.

हालांकि, इसके अलावा एक और बड़ी चुनौती रूट्स को लेकर भी है. नई उड़ानें किन-किन रूट्स पर चलेंगी यह भी अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है. 

स्टाफ़ भी जेट एयरवेज़ के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. कभी 16,000 कर्मचारियों वाली कंपनी में अभी ठीक-ठीक स्टाफ़ की संख्या भी सामने नहीं आई है. कंपनी जब घाटे में जा रही थी और उड़ानें बंद हुई थीं, तब जेट एयरवेज़ के पायलट और कर्मचारियों को कई बार विरोध प्रदर्शन करते देखा जा चुका है. 

कोरोना काल में बाक़ी इंडस्ट्री की तरह एविएशन इंडस्ट्री को भी काफ़ी चोट पहुँची है.

हाल ही में एविएशन कंसल्टेंसी फर्म कापा इंडिया की जारी रिपोर्टमें कहा गया था कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर के कारण घरेलू विमानन सेक्टर ढह सकता है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि इसके कारण जहाँ छह बड़ी और तीन क्षेत्रीय एयरलाइंस कंपनियाँ अपनी सेवाएँ दिया करती थीं, वो अब सिर्फ़ दो से तीन ही रह सकती हैं.

वहीं, 2020 में कोरोना के कारण देश की दो बड़ी एयरलाइंस कंपनियों इंडिगो और स्पाइसजेट को काफ़ी नुक़सान हुआ था.

इंडिगो ने पहली तिमाही में 2,884 करोड़ और दूसरी तिमाही में 1,194 करोड़ का नुक़सान झेला था. 

ऐसे समय में जेट एयरवेज़ का दोबारा शुरू होना उसके लिए और भी बड़ी चुनौती है.

इसके अलावा जेट एयरवेज़ के सामने अब एयर इंडिया, इंडिगो, गो एयरवेज़, स्पाइसजेट के अलावा विस्तारा जैसी एयरलाइंस कंपनी की भी चुनौती है. 

नाम न बताने की शर्त पर विमानन विशेषज्ञ कहते हैं कि जेट एयरवेज़ के लिए यह ज़ीरो से शुरुआत है. 

वो कहते हैं, "जेट एयरवेज़-2 का ब्रैंड नेम इस्तेमाल किया जाएगा लेकिन यह कंपनी की नई शुरुआत है. इसके आगे काफ़ी चुनौतियाँ होंगी लेकिन उनकी योजना मज़बूत है. विरोधी कंपनियों के आगे इनका नया प्रोडक्ट होगा जिसको पैर जमाने में समय लगेगा लेकिन जेट एयरवेज़ का नाम जुड़ा होने से पुराने उपभोक्ता इसकी ओर ज़रूर लौट सकते हैं."


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